डॉ. रामबली मिश्र
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हरिहरपुरी की कुण्डलिया
मानव काढ़ रहा यहाँ, मानव की ही खाल।कौवा-कुत्ता-गिद्ध बन, नोंचत सब के बाल।।
नोंचत सबके बाल, दरिंदा पतित अपावन।
ले अवसर का लाभ,नाचता नीच डरावन।।
कहें मिसिर कविराय,हुआ जो मन से दानव।
ऐसा घृणित पिशाच, नहीं बन सकता मानव।।
Haaya meer
30-Dec-2022 07:13 PM
👌👌
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Sachin dev
30-Dec-2022 04:24 PM
Well done ✅
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30-Dec-2022 07:13 PM
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Sachin dev
30-Dec-2022 04:24 PM
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